वह नित्य पत्र लिखता. वह नित्य जवाब देती.
उसके हर पत्र मे जुदाई का शिकवा होता.
उसके हर पत्र मे तड़प का समंदर होता.
दिन कम होते गये.
फिर उसने पत्र लिखा. उसके लड़की हुई थी. लड़की के बारे मे उसने पत्र लिखा. उसकी आँखें जैसी, उसके होंटो जैसी, उसके गालों जैसी, उसके बालों जैसी.
वह हर रोज़ पत्र की प्रतीक्षा करती.
वह प्रतीक्षा करती रही ... बस, प्रतीक्षा करती रही.
2 comments:
मार्मिक चित्रण..कब बदलेगी मानसिकता?
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
इस सदी में भी ऐसी मानसिकता !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!
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