Friday, October 16, 2009

जूते

निर्मल आज गाओं से जूते खरीदने शहर आया था. साथ मे उसका सीरी (हिस्से पर काम करने वाला खेत-मजदूर) भिन्दा भी था. भिन्दा निर्मल का हम उम्र था, इसलिए दोनों की अछी पटती थी.

जूतों की दुकान पर नया जोड़ा पसंद करने के पश्‍चात निर्मल ने पाओं मे पहनते हुए दुकानदार से पुराने जूते डिब्बे मे डाल देने के लिए कहा.

दुकानदार बोला, "सरदार जी, इनका क्या पॅक करना. अब तो बेकार हैं, कहे तो फेंक दू?"

निर्मल 'हां' कहने ही वाला था की भिन्दे को अपनी ओर झाँकते देख चुप कर गया. भिन्दे ने पुराने जूते दुकानदार से लेकर अपने पाओं मे पहन लिए और अपने टूटे से जूते दुकानदार को पकड़ाते हुए कहा, "इन्हे डिब्बे मे डाल दो, छोटा पहन लेगा, ठंड मे नंगे पाओं फिरता है."

2 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

निशि दिन खिलता रहे आपका परिवार
चंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार
खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से
हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार

परमजीत सिहँ बाली said...

मार्मिक।

शुभ दीपावली।

Post a Comment