Saturday, July 18, 2009

आंटी

मात्रभाषा पंजाबी का शोदई था वेह। उस महान लेखक ने अपनी रचनाओं में किसी दूसरी भाषा की परछाई भी नहीं पड़ने दी।

बोलते हुए भी कभी भूलकर भी अंग्रेज़ी या अन्य भाषा का प्रयोग नही करता था। अपने पाँच वर्षीय बच्चे को भी 'अंकल' की जगह 'मामा जी ', 'चाचा जी' ही सिखाता था ।

उस दिन अपने बचे के साथ बाज़ार में घूम रहा था की, उसे अपने कोलेज के समय की 'दोस्त' मिल गई। दोनों एक रेस्तरां में बैठे अपनी पूरानी यादे ताज़ा करते रहे और बचा धीरे धीरे मेंगोशेक पीता रहा ।

जब आधे पौने घंटे बाद लड़की उससे विदा हुई तो लड़के ने पुछा, "पापा जी , ये कौन थी?"

"बेटे ये तुम्हारी .... । " और वेह इस तरह रुक गया, जैसे कोई उपयुक्त शब्द तालाश कर रहा हो। कभी 'मौसी' कभी 'बुआ' तो ज्यादा भद्दा सा लगा ।

और फ़िर उसने ठंडी साँस लेते बच्चे को बताया , "बेटे, यह तेरी आंटी थी' और उसे अपने मन से बोझ हल्का होता महसूस हुआ ! (;

3 comments:

नीरज गोस्वामी said...

दिलचस्प लघुकथा...चंद शब्दों में कितनी सारी बात कहने की विलक्षण कला है ये..
नीरज

संगीता पुरी said...

अच्‍छी कथा !!

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! कई बार दूसरी भाषा इस्तेमाल कर बेहतर अभिव्यक्त करने में क्या नुकसान है.

सुन्दर कथा.

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